ktg news : “राष्ट्रपति के दत्तक पुत्रों” का उपेक्षित बचपन: तीलधरा गाँव में नहीं पहुंची आँगनबाड़ी, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं.. सवालोँ के घेरे में प्रशासन व जनप्रतिनिधि.

कोरबा/पोंडी उपरोड़ा 4 जून 2025 : छत्तीसगढ़ के कोरबा ज़िले से लगभग 75 किलोमीटर दूर, घने जंगलों और पहाड़ी इलाकों के बीच बसा एक गाँव — तीलधरा। यह ग्राम पंचायत मानिकपुर का आश्रित ग्राम है, जो पोड़ी उपरोड़ा विकासखंड के अन्तर्गत आता है। इस क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता जितनी मोहक है, उतनी ही गंभीर यहां की सामाजिक विडंबनाएं भी हैं। यहां निवास करती है भारत की एक विशेष जनजाति — पंडो समाज, जिन्हें ‘राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र’ भी कहा जाता है। लेकिन यह सम्मान इनके जीवन की मूलभूत समस्याओं को हल नहीं कर सका।
शहरों में जहां शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण योजनाओं की रोशनी बच्चों के भविष्य को उजागर कर रही है, वहीं तीलधरा जैसे गाँव अंधेरे में डूबे हुए हैं। यहाँ आज भी महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा संचालित आँगनबाड़ी योजना की सुविधाएं नहीं पहुँच पाईं हैं। हालाँकि सरकार यह योजना देश की के कोने-कोने तक पहुंचने का दावा करती है, लेकिन तीलधरा इसका एक अपवाद है।

जब समाज ने खुद उठाई जिम्मेदारी
सरकारी उदासीनता और सुविधाओं के अभाव को देखकर पंडो समाज ने हार नहीं मानी। उन्होंने स्वयं अपने बच्चों के लिए एक ‘झोपड़ी जैसी आँगनबाड़ी’ का निर्माण किया। इसकी दीवारें बांस की हैं, छत घास-फूस की, और बुनियाद लकड़ी की — लेकिन इसकी सबसे मजबूत नींव है आशा, आत्मबल और शिक्षा के प्रति जागरूकता। गाँव की ही एक युवती सुनीता पंडो ने इन बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। यह आँगनबाड़ी किसी सरकारी योजना से नहीं, बल्कि पंडो समाज की आत्मशक्ति और अपने बच्चों के भविष्य की चिंता से जन्मी। सुनीता की शादी के बाद जब वह अपने ससुराल चली गईं, तो बच्चों की पढ़ाई एक बार फिर थम गई। समाज एक बार फिर से अंधेरे की ओर लौटने को मजबूर हो गया।
अनसुनी गुहार, उपेक्षित बचपन
गाँव वालों ने कई बार स्थानीय प्रशासन और संबंधित विभागों से गुहार लगाई कि गाँव में एक स्थायी आँगनबाड़ी केन्द्र खोला जाए, लेकिन अब तक कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया गया। वर्तमान में गाँव में लगभग 30 छोटे बच्चे हैं, जो शिक्षा, पोषण और स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित हैं। सबसे चिंताजनक स्थिति है टीकाकरण की। आज के आधुनिक भारत में जहां नवजातों को जन्म के साथ ही नियमित टीकाकरण मिल रहा है, वहीं तीलधरा के इन बच्चों को आज तक कोई भी टीका नहीं लगाया गया है। ना ही यहाँ कोई स्वास्थ्यकर्मी आता है और ना ही पंडो महिलाओं को किसी प्रकार की जानकारी दी जाती है।

जन्म प्रमाण पत्र — एक और संघर्ष
यहाँ जन्म प्रमाण पत्र बनवाना भी एक दुर्गम चुनौती है। वनांचल क्षेत्र में बसे होने के कारण न तो इन तक योजनाओं की पहुँच होती है, न ही इन्हें आवश्यक दस्तावेजों के लिए मार्गदर्शन मिल पाता है। बिना प्रमाण पत्र के ये बच्चे सरकारी स्कूलों, योजनाओं और अन्य आवश्यक सेवाओं से वंचित रह जाते हैं।
सवालों के घेरे में प्रशासन
जब एक समाज, अपने सीमित संसाधनों में भी अपने बच्चों को शिक्षित करने के लिए पहल कर सकता है, तो प्रशासन और सरकार की चुप्पी एक बड़ा सवाल खड़ा करती है। तीलधरा में ना बिजली है, ना पक्की सड़क, ना आँगनबाड़ी, ना स्वास्थ्य केंद्र, और ना ही कोई सरकारी उपस्थिति। यह हालात दर्शाते हैं कि विकास के दावे कितने खोखले हैं, खासकर तब जब बात देश के सबसे संवेदनशील और विशेष समुदाय की हो

तीलधरा गाँव और वहाँ का पंडो समाज हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या वाकई विकास सब तक पहुँचा है? क्या यह समाज केवल “राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र” कहलाने तक ही सीमित रह जाएगा? जब तक योजनाएं कागज़ से निकलकर इन जंगलों तक नहीं पहुँचेंगी, तब तक तीलधरा जैसे गाँव विकास की दौड़ में पीछे छूटते रहेंगे। सरकार और प्रशासन को चाहिए कि वे इन आवाज़ों को सुने, और तीलधरा जैसे गाँवों तक शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण की मूलभूत सुविधाएं पहुंचाने के लिए ठोस कदम उठाएं।


